रविवार, 9 मई 2021

संपादकीय विशेष: जिंदगी का एक ही पासवर्ड है, ऑक्सीजन

योगेंद्र यादव (जिज्ञासु) गोरखपुर

अस्पताल खोलो ,अस्पताल खोलो चिल्लाने वालो सौ अस्पताल न खुलवा कर मौहल्ले मौहल्ले के बंद पडे़ अखाडे़ खुलवा दो ,दंड बिट्ठक खेलो, फेफड़ों में हवा भरना सीखो,
बच्चों को मैदान में पुराने खेल खेलने दो फिर देखो कौन बीमार पड़ता है ।
     पुराने जमाने में डाक्टर घर पर आता था।बचपन में झोले में दवाइयां लेकर डॉक्टर घूमते थे।ऐसा हमने देखा था। एक ही इंजेक्शन से सुई लगती थी।बहुत लोग बताते थे - 'हमने पूरी जिंदगी इंजेक्शन नहीं लगवाई।'
हम पिछले दिनों बीमार थे जनपद के एक प्रसिद्ध चिकित्सक दवाइयों से ज्यादा मास्क पहनने पर जोर दे रहे थे।मास्क नाक के नीचे क्या उतर गया उन्होंने 15-20 वर्षों की पढ़ाई का लैक्चर दे दिए।भला बताए मास्क से कॉरोना का क्या मतलब।और मतलब है भी तो मास्क मुंह के लिए है न। आपदा को अवसर के रूप में देखने वालो को लानत भेजते हैं ।जो जिम्मेदार है उनका दायित्वबोध है कि हालात से निपटने के लिए सर्वोत्तम कदम उठाए न कि मास्क मास्क का खेल खेलें और आम लोग उसका सहयोग करें और गाइड लाइन का पालन करें ।
एक पेड़ कटने पर दो पेड़ लगाने का कानूनी प्रावधान हो।
खैर ज्यादा सोचना भी बुद्धि की निरंकुशता है।
 गर्भ में पल रहे शिशु से लेकर जान जाने तक बीमारियों का खौफ। अब तो गर्भ धारण भी एक बीमारी हो गई है
पेट में बच्चा आते रूटीन चेक अप।ऐसा क्यों हुआ?
सीधा सपाट उत्तर हमने बड़े होने के ढोंग में नैसर्गिक और प्राकृतिक जीवन छोड़कर ,स्टाइलिश जिंदगी को तरजीह दी जहां हम पैसे वाले,बाबू साहब ,भट्ठा मालिक,पेट्रोल पंप मालिक और न जाने कौन कौन से विशेषण से नवाजे गए।
     अखाडे़ जाने में शर्म आती है , फेफड़े नहीं फुलाओगे तो अस्पताल ही तो जाओगे ,मोटी रकम चुकाओगे हाथ में खुची सुई लेकर शान से बताओगे एवन हास्पिटल से आया हूं 25000 दिन का चार्ज था।                                     
     आज की स्थिति का सबसे बडा़ कारण है संयुक्त परिवार खत्म होना। इससे खानपान संयमित व संतुलित होता था । घर के अचार मुरब्बे होते थे ।
बीमारियों से लडने की ताकत होती थी।समूह से डर नहीं होता।
एकांत से हार्ट अटैक और तमाम अवसाद होते हैं।
अब तो तन्हाई में रात गुजारने की आदत हो गई है जब बीमारी की हालत में रातें काली और भयावह हो जाती हैं।पड़ोसियों का कॉन्सेप्ट लगभग ख़तम हो गया है।
    अब शादी होते ही घर से अलग और सैर सपाटे चालू । खाना कौन बनाये तो होटल,पिज्जा, बर्गर, छोले भटूरे, डोसा , इढली, पैकेट बंद खाना शुरू ।
     ये पेट तो भर सकते हैंं जीभ को स्वाद दे सकते हैं पर शारीरिक ताकत नहीं दे सकते ,और धीरे-धीरे बीमारी का घर खुद तैयार करते हैंं ।
     अब औलाद पैदा हुई तो चुम्मा ले लेकर सबसे अच्छे पैरेंट्स बनकर दिखाना चाहेंगे ,मुन्ना को कोई तकलीफ न हो पपोल पपोल कर रखेंगे ,अब दो साल में प्राइवेट स्कूल में नाम लिखवा देंगे क्योंकि पैसा है पावर है फीस भर देंगे , सरकारी स्कूल की ऐसी की तैसी,जबकि खुद सरकारी स्कूल में पढे़ थे ।
     बच्चा मोम डैड बोलेगा हम खुश होंगे ,बच्चा अंग्रेजी पढे़गा तो रामायण , महाभारत ,गीता क्या है ? कैसे जानेगा और बच्चा स्ट्रांग कैसे बनेगा ।
      अरे याद करो वो गुल्ली-डंडा का खेल , हॉकी, गोली- गुच्ची पकड़मपकडाई, लुकाछिपाई,  खो-खो जैसे न जाने कितने ही उछलकूद वाले खेल, खेल कर हमारे बुजर्ग 90-100 साल तक जीते थे।जबकि आज कल के बच्चे 50 साल मुश्किल से निकालेंगे ।
     अब घर में कूलर एसी चाहिए सारे खिड़की दरवाजे बंद अब शुद्ध वायु कहां से मिले ? कबूतरनुमा दड़बों जिसे फ्लैट कहते हैंं उसमें चौथी पांचवीं मंजिल पर रहेंगे जहां न सूर्य का प्रकाश आयेगा न हवा, बंद बंद रहेंगे।अब आफिस से घर 10 किलोमीटर दूर तो घर पहु़ंचने का टेंशन इसलिये बैंक से कर्ज लेकर कार खरीद ली।छोटे मोटे काम के लिये मोटर सायकल ले ली । बस फ्लैट गाडी़  के कर्ज में बंध गये उसका टैंशन । 
     शरीर को तंदरुस्त के लिए पैसे देकर जिम जा कर बन्द कमरे में मशीनों पर तो कूदने में अपनी शान समझते हो हेल्थ टोनिक के नाम पर महंगी दवाई (केमिकल-जहर) खाते हो ,लेकिन सुबह- सुबह घर के नजदीक होने पर भी पार्क में पैदल जा कर ताजी हवा के साथ घूमना और वर्जिश करना मंजूर नही ।
 थोड़ा सा कुछ भी होने पर हजारों रुपये की टेस्टिंग व दवाइयां खा लेंगे लेकिन दादी-नानी के बताए नुस्खे मंजूर नही।ऐसे में आदमी जी कहां रहा है रोज रोज मर ही तो रहा है ।
ये कोरोना का काल  जीते मरते लोग हवा हवाई दावे ,अस्पतालों में लगती भीड़ सिलेंडर वाला ऑक्सिजन।पेड़ - पौधों को काट कर लेन फोर लेन,सिक्स लेन उस पर धुआ छोड़ती गाडियां।जल्दी पहुंचने की होड़।यह पीढ़ी तो तबाह हो गई बची तबाही अपने आने वाली नस्लों को देंगे यही हाल रहा तो निःसंदेह एक बंजर भारत छोड़कर जाएंगे जहां लोगो के पीठ पर ऑक्सिजन का सिलेंडर होगा।
अभी भी वक़्त है अपनी आवश्यकता कम करो ,दर्जन भर जींस पैंट शर्ट, दो दर्जन टी शर्ट पहनने वालो दिन के हिसाब से जूते पहनने वालों रहम करो ।अपनी विदेशी जीवन शैली क्षदम जीवन से परहेज़ करो।जीवन में सरलता लाओ।बड़े होने के चक्कर से बचो।
लौट चलो वही जहां जीवन था मस्ती थी।भाई बन्धु थे। गांव गिराव और खेत - खलिहान था।सुकून था।मौज था।
चांद पर ऑक्सिजन खोजने वालो। यहीं ऑक्सीजन है उसे बचाओ क्यो कि जिंदगी का एक ही पासवर्ड है ऑक्सिजन।

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