राजधानी: गोरखपुर। प्रारंभ में चौरी- चौरा विद्रोह को सम्मानित करने के बजाय उसे उपेक्षित किया गया।राष्ट्रीय आंदोलन की पहली घटना है जो अंग्रेजो के खिलाफ जबर्दस्त प्रतिकार थी।चौरी - चौरा विद्रोह एक अभूतपूर्व घटना थी जिसमे विद्रोहियों ने चौरी- चौरा थाने में आग लगाकर 24 ब्रिटिश हुकूमत के सिपाहियों को जिंदा जला दिया था।
इतिहास की कमजोरियों और चालाकियों के कारण बलिदानियों के शौर्य को कम आंका गया।
इस आंदोलन के नेतृत्व कर्ताओ में एक थे गोरखपुर जनपद के ब्रह्मपुर ब्लॉक के राजधानी गांव निवासी 40 वर्षीय चुडीहार अब्दुल्लाह।
अब्दुल्लाह टोकरी में कांच की चूड़ियां लेकर गांव- गांव बेचते थे! जिससे उनका जीविकोपार्जन होता था।
गोरखपुर और आसपास में जब असहयोग आंदोलन की चर्चा शुरू हुई तो अब्दुल्लाह उसमे भाग लिए बिना नहीं रह सके।फ़रवरी 1921में गांधी जी का भाषण सुनने भगवान अहीर,विक्रम और नजर अली के साथ गोरखपुर गए थे।
अब्दुल्लाह इसके बाद जल्द ही पत्नी तीलिया और 2-3 साल के बेटे रसूल को छोड़कर लगभग 40 साल की उम्र में अहमदाबाद कमाने चले गए ।
दिसम्बर 1921में वहां कांग्रेस अधिवेशन में स्वयं सेवक के रूप में मुस्लिम मेस में काम किया था।
अब्दुल्लाह अधिवेशन में हुई चर्चा से प्रभावित थे।वहीं उन्हें रूसी क्रांति और मजदूरों किसानों के राज्य की स्थापना की जानकारी मिली।
मजदूर किसान के राज का स्वप्न लिए अब्दुल्लाह अपने गांव राजधानी आए।
यह वही दौर था जब देश में गांधी जी के असहयोग आंदोलन के समर्थन में लगातार असहयोग कर रहा था।
विद्रोही विक्रम अहीर,भगवान अहीर और कोमल अहीर पहलवान थे।उस दौर के 40-50 किलोमीटर के पहलवानों में आपसी सम्बन्ध थे।डूमरी खुर्द के अखाड़े को नजर अली चलाते थे।
सहुआकोल के कोमल पहलवान चौरी चौरा विद्रोह के समय थाने में थे।इस विद्रोह के बाद इनकी भी गिरफ्तारी हुई थी।कोमल पहलवान पहले व्यक्ति है जो जेल से भागने में सफल हो गए लेकिन पुनः गद्दारों की मुखबिरी के बाद इनकी गिरफ्तारी हो गई। 1924 के गर्मियों में इनकी फांसी हो गई।80 वर्षीय कॉमरेड पुरुषोत्तम त्रिपाठी गोरखपुर में 1920 में हुए ग्वाल विद्रोह को चौरी - चौरा विद्रोह का एक कारक मानते है।अब्दुल्लाह और कोमल की अपने अपने इलाके के जमींदारों से अदावत थी।ये लोग सामंतों के उत्पीड़न के शिकार थे।
सजा ए मौत के बाद अब्दुल्लाह अपने गांव के जमींदारो के ऊपर विद्रोह में फसाने का आरोप लगाते हुए मर्शी अपील किए थे।गांव के जमींदार पर पहली पत्नी के कब्र खोदने का आरोप लगाए थे।इन सब बातों से प्रतीत होता है कि अब्दुल्लाह और कोमल सर्वहारा नेता थे जो आम आदमी की सामंती उत्पीड़न से भी मुक्ति चाहते थे।
कोमल पहलवान का आना जाना राजधानी के गोकुल अहीर और ठाकुर अहीर के वहां था।चौरी- चौरा के आसपास के पहलवानों से कोमल पहलवान का अच्छा संबंध था।स्थानीय लोगों का मानना है कोमल इस विद्रोह के प्रमुख किरदार दे जिनका अब्दुल्लाह के गांव राजधानी आना जाना था।यह सम्भव है कि उनका सम्बन्ध अब्दुल्लाह से रहा हो।कोमल पहलवान के गांव के रिटायर्ड प्रिंसिपल आर एस दुबे बताते है कि कोमल पहलवान स्थानीय जमींदारों से लोहा लिए थे।ब्रिटिश हुकमत का जमींदारों के गठजोड़ का नतीजा रहा कि विद्रोह के बाद कोमल का घर ब्रिटिश हुकुमत ने जमींदोज कर दिया था।श्री दुबे आगे बताते है कालांतर में उनके परिजन चैनपुर गांव में बस गए।
असहयोग आन्दोलन के प्रारंभ में स्वयं सेवकों की भर्ती प्रक्रिया शुरू की गई थी।लाल मोहम्मद ,नजर अली ,भगवान अहीर सबसे पहले नेशनल वालिंटियर बन गए थे। राजधानी मंडल के अध्यक्ष अब्दुल्लाह थे।13 जनवरी,1922 को डूमरी खुर्द में मण्डल स्थापना के बाद दूसरी मीटिंग 4 फरवरी शनिवार को हुई।
भगवान अहीर की थानेदार गुप्तेश्वर सिंह से पिटाई के बाद स्वयं सेवक बहुत आहत थे।
विद्रोहियों की भीड़ 4 फरवरी को दोपहर 1 बजे किसानों के नेतृत्व में दो हजार से ज्यादा गांव वालों ने थाने को घेर लिया।ब्रिटिश सत्ता के लंबे अपमान और उत्पीड़न की प्रतिक्रिया में उन्होंने थाना भवन में आग लगा दी। जिसमें छुपे 24 सिपाही जल कर मर गए।
उसके बाद ब्रिटिश हुकमत ने जबरदस्त तांडव शुरू हुआ।फिर एक - एक करके विद्रोही गिरफ्तार हुए।
आदालती कार्यवाही के बाद 19 लोगो को सजा ए मौत के बाद विभिन्न जेलों में फांसी दे दी गई। कई एक को विभिन्न सजाए हुई।
मुकदमा अब्दुल्लाह व अन्य बनाम ब्रिटिश हुकमत के नाम से चला। राजधानी निवासी अब्दुल्लाह के गिरफ्तारी के समय उनके बेटे रसूल की उम्र 4-5 साल की थी।पत्नी तीलिया की आंखो की रोशनी धीरे- धीरे चली गई। उनका और घर परिवार का जबर्दस्त उत्पीड़न हुआ।
अब्दुल्लाह की फांसी बाराबंकी के जिला कारागार में 3 जुलाई 1923 को प्रातः 6 बजे हुई थी।
राष्ट्रीय आंदोलन के महानायकों को इतिहास में विशेष जगह नहीं मिली। भगवान और रुदली केवट पेंशन भोगी सैनिक थे।ये दोनों प्रशिक्षित थे कारसेवकों को प्रशिक्षित करते थे। जब इतिहास सच्चे नायकों के साथ न्याय नहीं करता है तो लोक अपने नायकों को खुद सम्मानित करता है ।डूमरी खुर्द में आज भी मोहरम के गीतों में महिलाएं नजर अली और विक्रम की कुर्बानी को याद करती हैं ।
इसी प्रकार शिक्षक योगेन्द्र यादव जिज्ञासु' ने वर्ष 2008 में विभिन्न स्रोतों से आंकड़े जुटाकर राम चन्द्र इंटर कॉलेज राजधानी गोरखपुर में एक एकांकी कराकर एक बार पुनः अब्दुल्लाह के कुर्बानी को याद किया ।
गुमनाम हो गए अब्दुल्लाह के नाम से अपने निजी कॉलेज में अब्दुल्लाह कक्ष और उनके टोले का नामकरण शहीद अब्दुल्लाह करने का पहल किया जिस पर गांव के , इस्राइल, कबीर,जिब्राइल नसीरुद्दीन आदि के सहयोग से टोले का नामकरण कर दिया।
शिक्षक योगेन्द्र यादव जिज्ञासु से प्रेरणा लेकर अब्दुल्लाह टोले के नौजवान मोहर्रम में अब्दुल्लाह अखाड़े के नाम से कलाबाजियां करते हैं।
अब्दुल्लाह के एकलौते रसूल की २० वर्ष पूर्व लगभग ८० वर्ष की उम्र में इंतकाल हो गया।पिता की तरह रसूल भी हिन्दू- मुस्लिम सदभाव के हिमायती थे। गांव के प्रधान छत्रधारी यादव जो एक प्रतिष्ठित कॉलेज के प्राचार्य रह चुके है कहते है --'रसूल हिन्दू तीज त्योहारों में शामिल होते थे।' सम्प्रदायिक सदभाव के मिशाल थे किसी के मृत्यु के बाद भी अंत्येष्ठि स्थल तक जाते थे। रसूल बातचीत में अक्सर अपने पिता की कुर्बानी को याद करते थे।अब्दुल्लाह की पत्नी तिलिया की की मौत भी लगभग ८० साल की उम्र में हो गई।
चौरी चौरा विद्रोह के बाद तीलिया ३-४ साल के पुत्र रसूल को लेकर दर दर भटकती रही।ब्रिटिश हुकूमत ने जमकर तांडव किया।
बाराबंकी जेल में फांसी होने के बाद तीलियां बाराबंकी गई थी लेकिन शहीद की लाश अपने गांव न ला सकी।
अब्दुल्लाह की पौत्री सबूतर निशा सरकारी उपेक्षा की शिकार है ।आज भी गांव - गांव घूमकर चूड़ी बेचकर अपने बड़े परिवार का खर्च चलाती है।उनके पति शहादत ठेला चलाते है।देश पर मर मिटने वाले सच्चे वीरो के परिजन को भूख का भय सताता रहे उपेक्षा इंतहा तक हो तो सरकारी तंत्र पर सवाल तो निः संदेह उठेगा।
चौरी -चौरा विद्रोह पर पहली पुस्तक कॉमरेड राम मूर्ति ने 1982 में लिखी तब से लेकर अब तक चौरी- चौरा विद्रोह पर 4 पुस्तके प्रकाशित हुई।सब ने अब्दुल्लाह समेत सभी बलिदानियों के शौर्य पर प्रकाश डाला है।
वर्ष 2014 में इतिहासकार सुबाष कुशवाहा ने चौरी - चौरा कांड पर एक प्रामाणिक शोध परक , विस्तृत पुस्तक लिख कर इस विद्रोह को समझने मेंआसानी कर दी।खोजी पत्रकार शाह आलम पिछले 5 वर्ष से अवाम के सिनेमा बैनर तले चौरी - चौरा विद्रोह पर काम कर रहे हैं।
राष्ट्रीय आंदोलन में चौरी चौरी विद्रोह ने सर्वाधिक हस्तक्षेप किया।यह विद्रोह देश के आजादी के लिए निर्णायक रहा।
प्रदेश सरकार क्रांति की शताब्दी वर्ष मना रही है इसी क्रम में क्रांति के नायक अब्दुल्लाह के गांव में राम चन्द्र यादव कॉलेज में बड़े पैमाने पर कार्यक्रम करके जन विद्रोह के नायकों को याद किया गया।
योगेन्द्र यादव जिज्ञासु
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