मंगलवार, 29 जून 2021

गिरफ्तार: चोरी की साजिश रचते हुए तीन शातिर चोर गिरफ्तार, पूछताछ में बड़ा खुलासा

मसकनवा-गोंडा। एसपी संतोष कुमार मिश्र ने जिले में हो रही चोरी को देखते हुए नाराजगी जताई है। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में हो रही है। छोटी-छोटी चोरियों का खुलासा और उसमें लिप्त अपराधियों पर कड़ी कार्यवाही करने के निर्देश दिए हैं। इसको लेकर जिले के समस्त प्रभारी निरीक्षक और थानाध्यक्ष को दिशा निर्देश दिए गए थे। 
एसपी द्वारा दिये गए निर्देशों का पालन करते हुए छपिया थाना पुलिस ने तीन शातिर चोरों को गिरफ्तार किया है। पूछताछ में एक चोरों से बड़ी सफलता हाथ लगी है।
बता दें कि गिरफ्तार शातिर चोरों को मसकनवा गौरा चौकी रोड स्थित नहर पुलिया के समीप से गिरफ्तार किया गया है। पूछताछ में इन चोरों ने मार्च महीने में मसकनवा कस्बे में स्थिति एक घर से अंगूठी, चैन, बैटरी इन्वर्टर व अन्य सामान चोरी करने की बात सामने आई। वही भोपतपुर में स्थित मा दुर्गा इंटर कालेज से पांच दिन पहले सीलिंग फैन चोरी करने की घटना सामने आई। गिरफ्तार चोरों से उपकरण और निशान देही पर चोरी का सामान बरामद किया गया है। गिरफ्तार चोर राजेश उर्फ़ नानबच्चा शातिर अपराधी है। जिसपर बस्ती ज़िले में हत्या व लूट जैसे जघन्य मामलों में वांछित है। वही चोर सद्दाम भी छपिया थाना में गिरफ्तार हो चुका है। वही तीसरा चोर दीपक उर्फ़ दीपू भोपतपुर थाना छपिया का निवासी हैं। इस कार्यवाही को उपनिरीक्षक विनय कुमार पाण्डेय व उनकी टीम ने अंजाम दिया। 

सोमवार, 28 जून 2021

मांगः क्षेत्रवासियों ने अंबुज त्रिपाठी को जिला अध्यक्ष बनाए जाने की मांग

गोण्डाः जिला अध्यक्ष आनंद स्वरूप के निष्कासन के बाद गोंडा समाजवादी पार्टी में भूचाल आ गया है। लोग कयास लगाए बैठे हैं कि जिला अध्यक्ष नया कौन होगा वही गौरा विधानसभा के पार्टी के कार्यकर्ताओं ने मांग की है।

 कि समाजवादी पार्टी के 13 वर्षो से पार्टी से जुडे तेजतर्रार वरिष्ठ नेता अंबुज त्रिपाठी को जिला अध्यक्ष बनाए जाने की मांग जोरों पर है। अब देखना होगा कि जहां भाजपा जिला पंचायत अध्यक्ष के लिए ब्राह्मण कार्ड खेला है। अब क्या सपा जिला अध्यक्ष किसी ब्राह्मण को बनाकर  ब्राह्मण कार्ड खेल पाएगा।

गुरुवार, 17 जून 2021

Gonda: किसानों के हित के लिए किसान कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष का उपवास जारी

गोंडा. तहसील मनकापुर के घारीघाट पंचायत में किसान कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष तरुण पटेल अपने आवास पर 14 जून 2021 दिन सोमवार से किसान उपवास पर हैं. वहीं उन्होंने गुरुवार को प्रेस वार्ता में बताया कि उपवास का आज चौथा दिन है. यह उपवास किसान हितों की रक्षा के लिए/किसान हितों के संरक्षण के लिए और 200 दिनों से अधिक समय से चल रहे किसान आंदोलन के समर्थन में है.
उन्होंने कहा, यह किसान उपवास अनवरत अनिश्चितकाल के लिए जारी है. यह किसान उपवास तब तक चलेगा, जब तक जिम्मेदार लोग नीति-निर्धारक लोग किसान हितों में सही फैसले नहीं लेते. पशुधन की बर्बादी, फसलों की बर्बादी, फसलों का उचित दाम न मिल पाना, गांव-गांव गरीब का आम इंसान का आवारा पशुओं से चोटिल हो जाना, खेतों में लगी हुई फसल का आवारा पशुओं के द्वारा बर्बाद की जाने की समस्या आवारा पशुओं के द्वारा मारे जाने से तमाम लोगों की मौत हो जाना गन्ने का उचित दाम न मिल पाना किसानों से जुड़ी हुई तमाम समस्याओं और उनके हितों को ध्यान में रखते हुए यह उपवास किया जा रहा है.

शनिवार, 12 जून 2021

वारदात: छात्रा पर चाकू से वार कर जानलेवा हमला, तेल छिड़ककर जलाने का प्रयास

मसकनवा-गोंडा. छपिया थाना क्षेत्र के एक गांव में छात्रा पर दिनदहाड़े जानलेवा हमला करने का मामला सामने आया है. यहां एक सिरफिरे युवक ने दिनदहाड़े घर में घुसकर छात्रा पर हमला कर दिया.

बता दें, घर में घुसकर दबंग किस्म के युवक ने छात्रा पर चाकू से वार कर दिया. युवक ने पहले छात्रा को जलाने की कोशिश की, उसके बाद चाकू से वार कर दिया. वार के दौरान गले, हाथ और गर्दन पर चाकू के निशान लग गए. छात्रा पर वार करने वाला युवक उसी गांव का रहने वाला है. परिजन छात्रा को गंभीर हालत में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र छपिया लेकर आए जहाँ पर युवती की हालत गंभीर होने पर जिला अस्पताल गोण्डा के लिए रेफर कर दिया. जहाँ उसका इलाज जारी है. पुलिस ने हत्या के प्रयास सहित तमाम धाराओं में युवक के खिलाफ मामला दर्ज किया है.

छात्रा पर वार करने वाला युवक मौके से फरार हो गया. आरोपी युवक के खिलाफ धारा- 307 के तहत मुकदमा दर्ज हुआ है. छपिया थाना क्षेत्र के एक गांव की घटना है. फिलहाल, पुलिस युवक को पकड़ने के लिए टीम गठित कर छानबीन शुरू कर दी है.


गुरुवार, 10 जून 2021

Basti: क्रांतिवीर पिरई खां स्मृति समिति द्वारा महुआ डाबर जनविद्रोह दिवस, पर हुआ अंतरराष्ट्रीय वेब संवाद

 महुआ डाबर (बस्ती)


क्रांतिवीर पिरई खां स्मृति समिति द्वारा महुआ डाबर जनविद्रोह दिवस का आयोजन किया गया। अंतरराष्ट्रीय वेब संवाद को संबोधित करते हुए शहीद ए आजम भगत सिंह के भांजे प्रोफेसर जगमोहन सिंह ने महुआ डाबर घटना की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डाला। मालसन और थोम्पसन जैसे इतिहासकारों का हवाला देते हुए उन्होंने बताया की ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा अवध के इलाके में लागू की गयी ‘महालवारी ज़मीनी बंदोबस्त’ ने इस इलाके के किसानों और रईसों दोनों को बर्बाद कर दिया था क्यूंकि अंग्रेजों का मकसद सिर्फ ज्यादा से ज्यादा लगान वसूलना था, खेती की पैदावार बढ़ाने में उन्हें कोई रूचि नहीं थी। कंपनीराज के शोषण के कारण ही 1857 में अवध में जबरदस्त जनविद्रोह हुआ जिसमें समाज के हर तबके ने हिस्सा लिया। महुआ डाबर बस्ती जिले का एक कस्बा था जहाँ 1830 में मुर्शिदाबाद में अंग्रेजों के अत्याचारों से तंग आकर रेशम के कारीगर आकर बस गए थे। यह एक संपन्न कस्बा था जिसमे दो मंजिला मकानों की अच्छी खासी संख्या थी और शिक्षित वर्ग की भी ठीक-ठाक उपस्थिति थी। 10जून 1857 के विद्रोह के दौरान महुआ डाबर के निवासियों ने एक नाव पर, जिसमे अंग्रेज सैन्य अधिकारी बैठकर दानापुर जा रहे थे, हमला बोल दिया। जिसमे 6 सैन्य अधिकारी मारे गए थे। बाद में इसका बदला लेने के लिए अँगरेज़ सिपाहियों ने पूरे के पूरे कसबे को नष्ट कर दिया और एक एक व्यक्ति को फांसी पर चढ़ा दिया। यह घटना भारत के स्वतंत्रता संग्राम की एक अप्रतिम घटना है जो कि आज भी प्रेरणादायक है।

प्रोफेसर जगमोहन सिंह ने जोर देते हुए कहा कि साझा संघर्ष के केंद्र महुआ डाबर जनविद्रोह को हमें तीसरी पीढ़ी का कि नहीं हमें हमेशा के लिए याद रखना जरूरी होगा और उस क्रांतिकारी धरती को यादगार विरासत को संजोने की जरूरत है।

125 भाषाओं के गजल गायक डॉक्टर गजल श्रीनिवास ने महुआ डाबर में मेमोरियल बनाने, डाक्यूमेंट्री और दस्तावेजी किताब लिखने का प्रस्ताव रखा। जिससे महुआ डाबर का इतिहास को संजोया जा सके। इस मुहिम का सभी ने समर्थन किया। महुआ डाबर के वीरान खंडहरों को निहारने पहुंचे क्रांतिकारी लेखक शाह आलम ने यहां की तस्वीर दिखाई। 

दिल्ली विश्वविद्यालय से जुड़े इतिहासकार दुर्गेश चौधरी, प्रोफेसर शमसुल इस्लाम, पटना हाईकोर्ट के अधिवक्ता अभिषेक आनन्द, शिक्षक रॉबिन वर्मा, क्रांतिकारियों पर शोध करने वाले प्रबल शरण अग्रवाल, रुद्रप्रताप सिंह आदि ने महुआ डाबर के लड़ाके पुरखों को याद किया। प्रोग्राम का संचालन दुर्गेश कुमार चौधरी ने किया। महुआ डाबर में आयोजक आदिल खान, सुजीत कुमार, नासिर खान, अंकित कुमार, इरशाद ,विशाल पाण्डेय आदि ने अपनी भूमिका निभाई।

बुधवार, 9 जून 2021

जनविद्रोह दिवस: क्रांतिवीर पिरई खां स्मृति समिति मना रही है जनविद्रोह दिवस, अंतर्राष्ट्रीय वेब संवाद का आयोजन कल

 महुआ डाबर एक्शन से थर्रा गई थी ब्रिटिश हुकूमत

-क्रांतिवीर पिरई खां स्मृति समिति मना रही है जनविद्रोह दिवस

-स्मरण दिवस पर अंतर्राष्ट्रीय वेब संवाद का आयोजन कल

महुआ डाबर, बस्ती। बर्बर फिरंगी हुकूमत के खिलाफ बगावत की चिंगारी में फैल गई थी। गोरखपुर के सिपाहियों ने 8 जून 1857 को राजकोष लूटने की कोशिश की। कैप्टन स्टील और उनकी 12वीं अश्वारोही दल को आजादी के मतवालो ने पीछे खदेड़ दिया तो वही 8 एवं 9 जून को फैजाबाद तथा गोण्डा के सिपाहियों की टुकड़ी ने भी ब्रिटिश सरकार को ललकार दिया था। क्रांति की ज्वाला जलाने वाले पिरई खां और उनके क्रांतिकारी साथी देश की आजादी के लिए अपना सब कुछ कुर्बान करने के लिए आमादा थे।

महुआ डाबर के पास से षड्यंत्रकारी अंग्रेज अफसर दानापुर (पटना) जा रहे थे। भारतमाता के बहादुर बेटों को जुल्मी अंग्रेज अफसरो के इस रास्ते से आने की भनक लग गई। गुलामी की बेडियां तोड़ने और फिरंगियों से दो-दो हाथ करने के लिए पूरा इलाका एकजुट हो गया। पिरई खां के नेतृत्व में लाठी-डंडे, तलवार, फरसा, भाला, किर्च आदि लेकर यहां के रहवासियों की टुकड़ी ने मनोरमा नदी पार कर रहे अंग्रेज अफसरों पर 10 जून 1857 को हमला बोल दिया। लेफ्टिनेंट लिंडसे, लेफ्टिनेंट थामस, लेफ्टिनेंट इंगलिश, लेफ्टिनेंट रिची, लेफ्टिनेंट काकल और सार्जेंट एडवर्ड को मौत के घाट उतार दिया। तोपची सार्जेंट बुशर जान बचाकर भागने में सफल रहा। उसने ही घटना की जानकारी वरिष्ठ अफसरों को दी। इस क्रांतिकारी घटना ने तहलका मचा दिया। महुआ डाबर एक्शन ने ब्रिटिश सरकार की जड़ें हिला दी।



बौखलाई अंग्रेज सरकार ने 20 जून 1857 को पूरे जिले में मार्शल ला लागू कर दिया गया था। 3 जुलाई 1857 को बस्ती के कलक्टर पेपे विलियम्स ने घुड़सवार फौजो की मदद से महुआ डाबर गांव को घेरवा लिया। घर-बार, खेती-बारी,रोजी-रोजगार सब आग के हवाले कर तहस- नहस कर दिया गया। इस गांव का नामो निशान मिटवा कर ‘गैरचिरागी’ घोषित कर दिया। यहां पर अंग्रेजों के चंगुल में आए निवासियों के सिर कलम कर दिए गए। इनके शवों के टुकड़े-टुकड़े करके दूर ले जाकर फेंक दिया गया। इतना ही नहीं अंग्रेज अफसरों की हत्या के अपराध में जननायक पिरई खां का भेद जानने के लिए गुलाम खान, गुलजार खान पठान, नेहाल खान पठान, घीसा खान पठान व बदलू खान पठान आदि क्रांतिकारियों को 18 फरवरी 1858 सरेआम फांसी दे दी गई। जनपद गजेटियर में महुआ डाबर की घटना का जिक्र मिलता है। आजाद भारत में तमाम प्रयासो के बावजूद महुआ डाबर

के क्रांतिवीरो को बिसरा दिया गया। शासन-प्रशासन ने महुआ डाबर को लेकर कई बार घोषणाएं की लेकिन आज भी महुआ डाबर एक अदद स्मारक के लिए तरस रहा है। 


क्रांतिवीर पिरई खां स्मृति समिति से जुड़े लोग आज जाएंगे महुआ डाबरः

कोविड नियमों का पालन करते हुआ समिति से जुड़े युवा महुआ डाबर क्रांति दिवस के अवसर पर महुआ डाबर जाएंगे। यहां वो अपनी धुंधला दी गई गौरवशाली विरासत को याद करेंगे।

महुआ डाबर 1857 जनविद्रोह स्मरण दिवसः क्रांतिवीर पिरई खां स्मृति समिति

इस अवसर पर अंतर्राष्ट्रीय वेब संवाद का आयोजन दोपहर एक बजे करेगी। जिसे शहीद ए आजम भगत सिंह के भांजे प्रोफेसर जगमोहन सिंह, दिल्ली

विश्वविद्यालय से जुड़े इतिहासकार डॉ. सौरभ बाजपेयी, क्रांतिकारी लेखक शाह आलम आदि संबोधित करेंगे। इस दौरान विश्व के 125 भाषाओं में गाकर तीन बार गिनीज बुक में दर्ज सुविख्यात गायक डॉ. गजल श्रीनिवास अपनी विशेष प्रस्तुतियां देंगे। आनलाइन सत्र का संचालन विचारक दुर्गेश कुमार चौधरी करेंगे।

रविवार, 6 जून 2021

बैठक: उत्तर प्रदेश खेत मजदूर यूनियन के पदाधिकारियों ने की बैठक

मसकनवा(गोंडा) उत्तर प्रदेश खेत मजदूर यूनियन  राज्य कमेटी के आवाहन पर जिला संयोजन कमेटी की बैठक विकासखंड छपिया के ग्राम पंचायत के महमूदपुर ब्रांच में की गई। बैठक में कोविड से बचाव के सभी नियमों का पालन किया गया। बैठक की अध्यक्षता मंजू देवी संचालन कामरेड गंगाराम भारती ने किया। बैठक में कोविड से बचाव के नियमों का पालन किया गया। बैठक में जिला संयोजक खगेंद्र जनवादी ने कोरोना महामारी से बचने के उपाय मास्क लगाना ,दूरी बना कर चलना, बैठना ,भीड़भाड़ वाली जगह पर कम या न के बराबर जाना, बार-बार साबुन से हाथ धोना आदि बातों के बारे में आम जनमानस में ज्यादा से ज्यादा जागरूकता लाने पर जोर दिया गया । कोरोना से बचाव के लिये खुद वैक्सीन खुद लगवाने और दूसरों को भी वैक्सीन लगवाने के लिये प्रेरित करने की बात कही गईं।
बैठक में सदस्यता अभियान पर चर्चा की गयी। निर्णय लिया गया की कोविड नियमों का पालन करते हुये आगामी 10 जून को मनरेगा का काम शुरू करने, मनरेगा योजना में साल में 200 दिन रोजगार व  मजदूरी की दर छ सौ रूपये देने, सभी लोगों को दिसंबर माह तक 10 किलो प्रति यूनिट राशन,रसोई गैस तथा बिजली ,पानी, इलाज मुफ्त देने ,  आयकर से बाहर वालों को छ माह तक साढ़े सात हजार रुपए प्रति परिवार आर्थिक सहायता देने सहित आदि मांगे खंड विकास अधिकारी के माध्यम से प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री को भेजने का निर्णय लिया गया। बैठक में गजेंद्र पांडेय, विजय प्रताप, नीलम, पुष्पा, मंजू, सुमन आदि उपस्थिति रही।

शुक्रवार, 4 जून 2021

पर्यावरण दिवस विशेष: रोग और शोक मुक्त जीवन के लिए प्रदूषण मुक्त पर्यावरण चाहिए

चार दशक का संस्मरण
राजधानी का जिक्र होते ही लखनऊ और दिल्ली की तर ध्यान जाता है लेकिन जिस राजधानी का जिक्र हम कर रहे है वह गोरखपुर जनपद में स्थित हमारा गांव है।इस का नाम राजधानी क्यो पड़ा यह भी एक अनजान कहानी है यह मर्यो की राजधानी थी इसलिए राजधानी पड़ा ऐसी बहुत सी कहानी हवा में तैरती है हलाकि राजधानी बुद्ध कालीन गणराज्य था इसकी ऐतिहासिकता से मेल है।यह इलाका घनघोर जंगल था कदाचित मोरो के कूक से गुंजायमान था तभी तो मोरिय प्रदेश कहलाया।
हमारे पूर्वज बाढ़ पीड़ित के रूप में 1896 में 20-25 की संख्या में रुद्रपुर से आए थे।यहां पहले से रिश्तेदारी का एक घर आबाद था।
 80 का दशक आते आते इलाके के जमींदार कमजोर हो गए थे अब तक गांव में छोटे छोटे 52 पूर्वे हो गए थे।मेरे गांव की आबादी बहुजातीय आबादी है ।केवट बिंद मल्लाह चमार और पासी की संख्या ज्यादा है। ब्राह्मण अहीर क्षत्रिय की संख्या लगभग बराबर है।मुसलमानों में जुलाहों की संख्या भी ठीक ठाक है।कुम्हार और लोहार कुर्मी कोयरी भर-भूज,नोनिया भी है। सोनार खटीक ,कहार,बरई - बारी ,लाला और भूमिहार दो दो घर है। अलबत्ता बनियो की संख्या भी ठीक है।कुल मिलाकर किसी एक जाति का प्रभुत्व नहीं था।
उस समय गांव में बहुत गरीबी थी खेती के साथ साथ पशुपालन जीवन का आधार था।सिंचाई की उन्नत सुविधा थी।गांव में विद्युत उपकेंद्र स्थापित हो चुका था।यद्यपि कि हमारे घर 1967 में बिजली आ चुकी थी दूसरे उपकेंद्र से।विद्युत लगभग 24 घंटे रहती थी।
गांव की सड़के पगडंडी थी।सड़कें मुझहनी,मदार और गुरुखुल से पटी थी।अब तरक्की के नाम पर पेड़ काट दिए गए पक्की सड़के और धुआ छोड़ती गाडियां फर्राटा भरती है।होश संभालने वाली नस्लें प्राकृतिक जीवन छोड़कर पान बीड़ी सिगरेट में मस्त और तथाकथित तरक्की ने बीमारियो को जाने अंजाने आमन्त्रित कर रहे हैं।
 राजधानी चौराहे पर 2-4 दिन दुकानें थी। गाय -भैंस, फारेन , गोरा नदी और संठी ताल में चरने जाती थी।मूंग मसूर और अरहर जैसी दलहनी फसले भी होती थी। गन्ना मूंगफली गेहूं और धान की खेती प्रमुखता से होती थी।ज्वार बाजरा मक्के की खेती सम्पन्न किसान करते थे।सब्जी की खेती शुरू हो गई थी।
हमारे टोले में सिर्फ अहीरों का 12 घर था/ 3 लोग भारतीय रेल में और दो लोग शिक्षक थे।टोले में एका थी।किसी अन्य टोले से झगड़ा झंझट होने पर एक साथ सभी लाठी लेकर निकल पढ़ते थे।2 लोग जबर सोखा थे जो वर्ष में 2 बार काली माई की पूजा चढ़ाते थे।सबके घर से चंदा लगता था।पूजा चढ़ाते समय सोखा पर देवी सवार हो जाती थी हमारे मन में भी यही धारणा बैठ गई थी।
हमारे टोले के बगल में मिश्रित जाति की 50 घर की आबादी  खिरीहवा थी जो सांस्कृतिक रूप से बहुत सम्पन्न थी।वहां अक्सर कजरी फगुआ आल्हा और हरि कीर्तन होता था।
गर्मियों में तरकुलहा का मेला लगता था जहां से वर्ष का मसाला आदि लाते थे लोग।एक महीने तक मेला लगता था जिसमें बंगाल और नेपाल तक के दुकानदार आते थे।
मेले में उस दौर की बंगाल की प्रसिद्ध नौटंकी देखे थे।हमारे गांव के मदन कमल बनिया भी दुकान लगाते थे।
दशहरे का मेला राजी में लगता था।मेले में भीड़ बहुत होती थी।बच्चे वर्ष भर दशहरे के मेले का इंतजार करते थे
बाल मन के उस उत्साह को दुनिया का कोई पैमाना नहीं माप
सकता है।
 हर घर से एक लोग अखाड़े में जाते थे।मै बहुत कमजोर और शांत चित्त लड़का था।हममें कोई दिलचस्पी नहीं थी।घर में एक रेडियो थी पूरे गांव के लोग खेती- किसानी बिरहा आदि सुन लेते थे।घर के पूरब में फुरसत केवट का घर था जिनके कुएं पर गांव के लोग स्नान करने जाते थे।फुरसत मुंबई रह चुके थे।मिस्त्री थे/ चाय इत्यादि भी बना कर पीला देते।उनके बड़े बड़े आम के दो पेड़ थे बचपन के शुरुआती दिनों में हमने भी खूब आम खाए।
समाज में परस्परिक निर्भरता थी।रामजतन धोबी,विश्वनाथ लोहार ,चन्द्रशेखर नाई ,दुब्बर कुंभकार अपने जातीय वृत्ति को लेकर प्रायः हमारे टोले में आते थे।
अकलू, कीताबुल और मोहर दर्जी थे।इसमें कीताबुल समय के पावंद थे।मेघू मुसहर का घर आना जाना था अक्सर मुर्गा लेकर आते थे।कुछ मछली वाले भी समय समय पर मछली पहुंचा देते थे।
 छावनी टोला वाले पण्डित बड़े सीधे थे लालची बिल्कुल नहीं थे ठाकुर जी वाला पत्रिका लेकर आए दिन डटे रहते थे।भले व्यक्ति थे।
रामरती कटिया दौरी के सीजन में खेत खेत पान लेकर दौड़ते थे।मित्तन बर्फ बेचते थे।काकर खरबूजा तरबूजा बर्फ वाले पैसा नहीं लेते थे उसके बदले अनाज लेते थे।
हमें याद है सुबह मुर्गा बोलते थे ठीक उसी समय मस्जिद से अज़ान होती थी।ब्रह्म मुहूर्त में सब जगने के आदी थे।
बैलों के गले में बधी घंटी उनके नाद पर पहुंचते ही बजने लगती।
उस दौर में सारंगी बजाते गांधी टोपी पहने एक मुस्लिम भिक्षाटन के लिए अक्सर आते थे। उपदेशात्मक कविता कहानी कहते थे मसलन - हाथी से हजार हाथ और लम्पटों से 10 हजार हाथ दूर रहो।
जोगी जाति के लोग वर्ष में एकाध बार फेरी लगाते थे।शादियों में बरात दो दिन के लिए आती/जाती थी।गांव के रामाज्ञा नाट्य मंडली मशहूर थी।आल्हा रुदल, डाकू मानसिंह,भक्त पूरण मल तथा सती बिहुला बाला लखनदर आदि नाटक बहुत होते थे।चांद मियां की बैंड पार्टी की उस दौर में धूम थी।दो एक और मुसलमान बैंड पार्टी चलाते थे।शादी विवाह के परछावन ,द्वारपूजा आदि की रौनक हुआ करती थी बैंड पार्टियां। चिनगी डोम के पिता विवाह जैसे अवसरों पर डाल  मऊर लेकर हाजिर रहते थे। दर्जन भर लोग डोली ढोते थे।हमारे टोले पर भोला कहार की पार्टी आती थी।यह बात दीगर है की श्रम का शोषण अपने चरम पर था। बावजूद इन सबके गजब का समाजी ताना बाना था।अधिकतर लोगों के घर कच्चे लेकिन ईमान के पक्के थे।
गांव में पवरिया नगरिया और नट जाति की महिलाएं समय समय पर अपनी गीत गवनही की प्रस्तुति देते थे।
अन्य करतब दिखाने वाले मदारी आदि खूब आते थे।
मदारी का डमरू बजते ही क्या बच्चे क्या बूढ़े सब एकत्र हो जाते थे। कभी कभी टोना टोटका और नजर उतारने आ जाते ।ग्रामीण उनका बहुत सम्मान करते थे। उस दौर में चेचक बहुत होता था।धार कपूर खूब चढता था।अमहिया का माली फूल लिए घूमता रहता था ।
अब लोग आधे अधूरे मन से मिलते है आधा अन्दर से छुपे रहते है भाषा के चयन में बेहद औपचारिक होते है जिसमें हार्दिकता नहीं होती है उस दौर में माई भौजी पहुना बबुआ फगुआ दिया दियारी सब के सब सहज और ईमानदार थे।
गांव में अमन और  शांति नहीं थी। पुरई डाकू थे।पुलिस मुठभेड़ में मारे जा चुके थे।उस मुठभेड़ की चर्चा आम थी।इस्लाम मियां के घर एक भीषण डकैती हुई थी जिसमें डाकुओं का सरगना मार दिया गया था।तब मै 4-5 साल का था। स्मृतियां धुधली सी है हम भी बमबाजी की आवाज सुने थे।बगल के निषादों ने बदमाश जवाहिर को मार डाला था यह सब घटनाएं तनिक तनिक याद है।
स्कूल खुल चुके थे कम संसाधनों में ही सही लडके पढ़ने जाते थे।हमारे टोले की अहीरो की लड़कियां अभी पढ़ाई नहीं शुरू की थी अलबत्ता एक जो रिश्ते में बुआ लगती थी पांचवीं पास थी।
बरही के जमींदारों की गांव और अगल के गांवों में छावनी थी। उनकी गांव में हनक थी।राजधानी खास के पलटू पासी ने समाज में मानवता का एक किरदार पेश किया और बहुत प्रसिद्ध हुए उनका धन्य धान वैभव उस दौर के चर्चा के केंद्र में थे।वे अल्पायु में ही गुजर गए थे।
सुरहू सेठ थे सीजन में बड़े किसानों के अनाज खरीद लेते ।बड़े व्यापारी थे।सम्पन्न थे।व्यापार जगत में धाक थी।
यही वो दौर था जब गेहूं तेल चावल आदि की चक्की लगनी शुरू हो रहा था।अब तक प्रायः घरो की महिलाएं धान गेहूं कूटती और पिसती थी।
उस दौर में हमारे यहां 2 खपड़ैल और एक ईंट का मकान और एक मड़ई थी।ज्यादातर लोग खपड़ैल और मड़ई में ही रहते थे।हमारे खपड़ैल घर की यादें चटख है।खुले आंगन और उसमे वर्षा के पानी का अद्भुत नज़ारे। खपड़ैल घर के मुंडेर पर काग का बैठना।घर के ओसारे में  गौरैया का घोसला आज भी याद है ।माई की घी पोती रोटी। सिकहर की दही।माई की कहानी और उनके किरदारों में खुद जीना और कहानी के अंत तक पशोपेश में रहना।
गांव के जय नाथ और जगदीश डॉक्टर थे तब डॉक्टर घर घर जाते थे।ये लोग हर समय मौजूद रहते थे।दवाई को गरम पानी से खाने की हिदायत सदा देते थे। हमें याद है उन दिनों खजुली बहुत होती थी एस्केबियाल से खज़ुली और बिटेक्स से दाद दिनाय का राम बाण इलाज होता था।
प्रकृति से छेड़ छाड़ कम था ।नदिया सदा नीरा थी ।ताल तलैया भरे रहते थे।सड़कों के किनारे घर कम थे। साइकिल हमारे बचपन के दिनों की हवाई जहाज थी।वह आपातकाल में हमारे साथ रहती थी।हमारे गांव से 35 किलोमीटर की दूरी के लिए साइकिल का भरोसा करते थे।बीच बीच में पेड़ की छांव और नदी के किनारे रुकने का आनंद उठाते थे।साइकिल और उससे तय की गई दूरी अब हमारे स्मृति का हिस्सा बन चुके है।साइकिल हमारी यात्राओं का श्रंगार था।सच यह है कि आज भी साइकिल का विकल्प हवाई जहाज और कार नहीं है।नदियों और कुएं का पानी पीने योग्य था।
जीवन प्रकृति पर निर्भर था ।युग भी प्राकृतिक निर्भरता का था।चार पांच दशक पहले तक बड़े बड़े बरगद,पीपल और आम आदि के पेड़ थे। 
अब हम जंगलों को काट कर अपनी जमीन बंजर कर दिए अब आने वाली नस्लों को एक बंजर और प्रदूषित भारत देने में सफल होते जा रहे है।
यह भी सच है सरकारों ने पेड़ आदि लगाने का कई कार्यक्रम चलाए लेकिन सफल नहीं कहा जा सकता।पशुपालन मुख्य व्यवसाय था फॉरेन नाला की सैकड़ों एकड़ की जमीन चारागाह था।लेकिन प्रदूषण ने चारागाह को रद्द कर दिया।
यह आखिरी पीढ़ी है जो बचे पेड़ो का बचा सकती है नदिया फिर से सदा नीरा हो सकती है बशर्ते इंसान अपनी और अपने औलादों के अनावश्क मांगो पर लगाम लगाए।हलांकि अब यहां से लौटना मुश्किल है लेकिन दिनचर्या कभी भी प्रकृति के अनुरूप किया जा सकता है। जीवन को दीर्घायु बनाने के लिए प्रकृति को जीना पड़ेगा।पर्यावरण को बचाना पड़ेगा।कृत्रिम ऑक्सिजन से फेफड़ों को धड़काया नहीं जा सकता है।रोग और शोक मुक्त जीवन के लिए प्रदूषण मुक्त पर्यावरण चाहिए।
योगेन्द्र यादव जिज्ञासु

गुरुवार, 3 जून 2021

पंचायत चुनाव: पांच प्रधान, चार बीडीसी व 3987 सदस्यों के चुनाव 12 को, प्रशासन ने कसी कमर

पंचायत चुनाव

गोंडा। पंचायत चुनाव में रिक्त पदों के उप चुनाव की तारीख तय हो गई हैं। पंचायत चुनाव के बाद पांच प्रधानों और चार बीडीसी सदस्यों की मौत हो चुकी है। इन पदों के साथ ही रिक्त चल रहे 3987 पंचायत सदस्यों के पदों का भी चुनाव होगा।

उप चुनाव में 6 जून को नामांकन होगा और उसी दिन पर्चों की जांच पूरी होगी। इसके अलावा 7 जून को नाम वापस लिए जा सकेंगे। 7 को ही चिन्ह आवंटन हो जाएगा। 12 जून को मतदान होने के बाद 14 जून को मतगणना हो जाएगी। इसके बाद शेष पंचायतों के गठन की कार्रवाई पूरी हो सकेगी।

 

पंचायत चुनाव में 3987 पंचायत सदस्यों के पद रिक्त रह गए हैं, ऐसे में 363 पंचायतें ऐसी हैं जहां का कोरम नहीं पूरा हुआ। इससे यहां के प्रधान अपने पद पर बने तो रहे लेकिन पैदल ही हैं। तो वह खातों का संचालन कर पएं और ही पंचायतों की बैठक ही हुई। अब इनका इंतजार भी खत्म हो जाएगा।

जिले की 363 पंचायत में दो तिहाई सदस्य निर्वाचित नहीं हो सके। त्रिस्तरीय पंचायतीराज व्यवस्था में लोकतंत्र के सबसे छोटे पद के प्रति लोगों के बेरुखी से यह समस्या खड़ी हुई थी।

जिले की 1214 ग्राम पंचायतों में से 363 में ग्राम पंचायत सदस्यों की संख्या पूरी होने ये पंचायत की सरकार का गठन संभव ही नही है। जिले में ग्राम पंचायत सदस्यों के 3987 पद रिक्त हैं।

अब उपचुनाव की तिथि तय होने से पंचायतों का कोरम पूरा कराने के लिए निर्वाचित प्रधान सक्रिय हो गए हैं। बिना कोरम पूरा हुए पंचायतों का गठन संभव नही होगा। माना जा रहा है कि पंचायत सदस्यों का निर्वाचन उप चुनाव से पूरा हो जाएगा।

जिले की पांच ग्राम पंचायतों में निर्वाचित प्रधानों का निधन हो चुका है। इनमें विकासखंड कर्नलगंज की ग्राम पंचायत धनावा, परसपुर में चरहुंआ, कटराबाजार में टेढ़ी, तरबगंज में गौहानी नवाबगंज में ग्राम पंचायत नगवा की प्रधान शामिल हैं।

इसके अलावा चार बीडीसी के निधन से भी पद रिक्त है। अब उपचुनाव की तिथि तय होने के बाद इन पंचायतों में प्रधान पदों के लिए भी उप चुनाव होंगे। प्रधानों के निधन होने से इन पंचायतों का भी गठन अधूरा ही पड़ा है।

दर्दनाक हादसा: तालाब में डूबने से एक ही परिवार के 5 बच्‍चों की मौत, गांव में मातम 'सीएम ने जताया दुःख'

 बभनजोत:गोण्डा। जिले में गुरुवार सुबह थाना खोड़ारे क्षेत्र के रसूलपुर गांव में उस समय हड़कंप मच गया, जब एक ही परिवार के पांच बच्चों की तालाब में डूबने से दर्दनाक मौत हो गई. दरअसल, 6 बच्चे गांव के पास एक तालाब में मिट्टी निकालने गए थे. वहां पर नहाते समय जब एक बच्चा डूबने लगा. ऐसे में एक दूसरे को बचाने के चक्कर में पांच बच्चों की मौत हो गई और एक बच्ची को निकाला गया है, जिसका जिला अस्पताल में इलाज चल रहा है. मामले सीएम योगी आदित्यनाथ ने बच्चों की डूबने से हुई मौत की घटना पर संज्ञान लिया है. मृतकों के शोक संतप्त परिजनों के प्रति संवेदना व्यक्त की है. सूचना मिलते ही आलाधिकारी घटनास्थल पर पहुंचे. सभी शव का पंचनामा करवाकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है.

थाना प्रभारी ने बताया कि गुरुवार सुबह बच्चे गोबर की खाद लेकर खेत की तरफ गए थे. गोबर फेंकने के बाद एक बच्चा बगल स्थित तालाब से मिट्टी निकालने लगा. तालाब में उसका पैर फिसल गया, उसे बचाने के लिए तालाब में एक-एक करके अन्य बच्चे उतरते गए. इसमें सभी पांचों बच्चों की डूबकर मौत हो गई.

उन्होंने बताया कि चंचल (8) पुत्री अरविंद कुमार पांडेय, शिवाकांत (6) पुत्र अरविंद कुमार, रागिनी (8) पुत्री सुरेन्द्र कुमार, प्रकाशिनी (10) पुत्री सुरेन्द्र कुमार और मुस्कान (12) पुत्री वीरेंद्र कुमार की मौत हो गई. अरविंद, सुरेन्द्र और वीरेन्द्र तीनों सगे भाई हैं. मरने वालों में चार बेटियां और एक बेटा शामिल है. हादसे से परिवार और गांव में कोहराम मच गया.
घटना की जानकारी मिलते ही जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक समेत अन्य आलाधिकारी घटनास्थल पर पहुंचे. क्षेत्रीय विधायक प्रभात कुमार वर्मा भी घटनास्थल पर पहुंचे और घटना की जानकारी ली. और हरसंभव मदद का भरोसा दिया.

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